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सुगत मात्रिक छंद

"बरसाएँ" सुगत मात्रिक छंद चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत : प्रति चरण 32 मात्रा : 16,16 पर यति : ~~~~~~~~~~~~~~~~ प्रेम कुसुम से नीड़ बनाएँ, प्यासे प्रेमी प्यास बुझाएँ। गगन-पार से सुख की बारिश, आओ बादल बन बरसाएँ।।  ओस कणों में हम ढल जाएँ, रवि किरणों सी चमक बढ़ाएँ।। गगन-पार से सुख की बारिश, आओ बदल बन बरसाएँ।।  घोर उदासी पीड़ा गहरी, हर सूरत गमगीन भरी हैं। दिल कोने से उठी उसाँसें, इच्छाएँ भी डरी-डरी हैं।। मातम की छाया जिस मुँह पर, साथी बन कर दूर भगाएँ। गगन-पार से सुख की बारिश, आओ बादल बन बरसाएँ।।  पंछी बनकर नील गगन में, बेसुध होकर पंख पसारें। इंद्रधनुष सतरंगी जीवन, अपनाकर हम करें शरारें।। हर सूरत से जीवन झाँके, विटप नेह की पौध लगाएँ। गगन-पार से सुख की बारिश, आओ बादल बन बरसाएँ।।   गीत मिलन के मिलकर गाएँ, पलकों के झूलों में झूलें।  अमरबेल-सी बढ़े लालसा, कुसुम सरीखा हर मन फूलें।।  पुष्पवाटिका रंग बिरंगी, खुशबू से हर पल महकाएँ। गगन-पार से सुख की बारिश, आओ बादल बन बरसाएँ।। ★★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल'

दुर्मिल सवैया

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"दुर्मिल सवैया" इसे चंद्रकला छंद भी कहते हैं। यह एक वर्णिक छंद है।  इसमें चार चरण होते हैं और चारों चरण समतुकांत होना जरूरी है।   12,12 वर्ण पर यति का विधान है। इसमें लघु वर्ण लघु तथा गुरु वर्ण गुरु ही रहेगा। दो लघु को मिलाकर एक गुरु वर्ण नहीं मान सकते।  प्रति चरण 8 सगण (112 112 112 112, 112 112 112 112.) होते हैं। ~~~~~~~~~~~~~~~~ उदाहरण - ¶इस जीवन की बस आस तुम्हीं, भर दो हिय प्रेमिल प्राण प्रिय।  मनभावन सूरत प्रीत रची, हरलो हर तामस प्राण प्रिय।।  नयनों बसती छवि मोदमयी, छलके घट ज्यों नग खान प्रिय।  सुखसागर ही उमड़े दिल में, कर दो दिल का प्रतिदान प्रिय।।  ¶सहमी-सहमी बहकी पलकें, दिल में उठती मद गागर सी।  अधरों पर लौट गई अभिधा, नवप्रीत सजी हिय सागर सी।। बहकी रजनी उतरी धरती,  किरणें गतिहीन सुधाकर सी।  अलकें मचली बन घोर घटा, प्रिय प्रीत बहार उजागर सी।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल' कोटा (राजस्थान)

द्रुतिविलम्बित छंद

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द्रुतिविलम्बित छंद ~~~~~~~~~ यह एक वर्णिक छंद होता है जिसका आधार वर्ण होते हैं। यह चार चरण का एक छंद होता है तथा दो-दो चरण समतुकांत होना जरूरी है। प्रति चरण में 12 वर्ण होते हैं जो नगण-भगण-भगण-रगण की मापनी पर आधारित होते हैं  (111-211-211-212)  उदाहरण - नमन शारद ज्ञान प्रकाशिनी। हृदय संकट मात विनाशिनी।। तमस कीचक दुःख विदारिणी। मधुर भाव विराग सँवारिणी।। भ्रमर भाव विहंग सदा उड़े। विटप मौन सुवास रचे बढ़े।। रुचिर गन्ध विराट बहे सदा। मनन मंथन सार यदाकदा।। सतत श्री कर शोभित कामदा। हरण हो सब आतिश आपदा।। शरण में रख मात सुवासिनी। महक दे मन को सु-प्रभासिनी।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल' कोटा (राजस्थान)

विधाता छंद विधान

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. विधाता छंद विधान १२२२,१२२२,१२२२,१२२२ = २८ मात्रा १,८,१५,२२वीं मात्रा लघु अनिवार्य उदाहरण -  "बदलाव" ¶समय का चक्र चलता नित, सदा बदलाव होता है, कभी खाली नहीं जाता, हँसी का गाँव होता है। बदल जाती रही आशा, निराशा की भँवर गहरी, पकड़ कर जो चला इसको, सफल वह दाँव होता है।। ¶बदलती जिंदगी यारों, नहीं रहती सदा प्रहरी, सुखों की कामना बरसे, नजर में हो अदा गहरी। नदी की धार कहती है, बहो सम रूप होकर ही, किनारा पास आयेगा, टलेगी आपदा ठहरी।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल' कोटा (राजस्थान)

सार छंद

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सार छंद [विधान] दो-दो चरण समतुकांत :  प्रति चरण 28 मात्रा :  16,12 पर यति :  चरणान्त दो गुरू 【22  112  211  1111】 ~~~~~~~~~~~~~~~~ उदाहरण - मन पंछी मतवाला बनकर, हरदम उड़ता रहता।  नेह सरोवर डुबकी खाकर, लहर-लहर में बहता।।  बन अनंग हमजोली प्रियतम, प्रीत मेह बरसाता।  गुंजन करता उड़ता फिरता, मिलन राग तरसाता।।  कामातुर हैं नयन सजीले, कामुक तीर चलाता।  बन पराग हिय मध्य समाता, गागर भर छलकाता।।  लता विटप सब शर्माते हैं, लेता जब अँगड़ाई।  दसों दिशाएँ गुन-गुन गाएँ, छा जाती तरुणाई।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल'

मनहरण घनाक्षरी

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मनहरण घनाक्षरी - लेखन विधा घनाक्षरी के कई प्रकार होते है, सभी घनाक्षरियों में मनहरण घनाक्षरी सबसे ज्यादा प्रचलित विधा है।  अधिकतर लेखक , रचनाकार मनहरण घनाक्षरी लिखते हैं। यह चार छंद की होती है। प्रत्येक छंद का विन्यास (बनावट) इस प्रकार होता है - पद 1  -  चरण 1,  चरण 2     पद 2  -  चरण 3, चरण 4 ​प्रत्येक छंद में दो पद (पंक्तियाँ) होते है।  प्रत्येक पद में 2 चरण होते है।  इस प्रकार प्रत्येक छंद में कुल 4 चरण होते है। ​ अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं हैं। मनहरण घनाक्षरी कैसे लिखें तो अब आप चिंता से मुक्त हो जाइये, क्योंकि यहाँ आपको सरलतम भाषा में मनहरण घनाक्षरी लेखन की विधा, शब्द विन्यास, वर्ण गणना, लेखन नियम आदि सभी जानकारी दी जा रही है।                     मनहरण घनाक्षरी में वर्ण गणना इस प्रकार होती है -  पद 1  -  चरण 1 (8 वर्ण), चरण 2 (8 वर्ण)  पद 2  -  चरण 3 (8 वर्ण), चरण 4 (7 वर्ण) अंतिम वर्ण दीर्घ  (गुरु) लेने से मनहरण घनाक्षरी अत्यधिक आकर्षित व सुंदर लगती है। भारतीय छंद विधा गेय (गाने योग्य) होती है, इसलिए इसे लिखते समय शब्दों का चयन कुछ इस प्रकार करें की इसे सुगमता से गाया जा स

दोहा कैसे लिखें? 'सजल'

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 दोहे कैसे लिखे? प्रिय दोस्तों, दोहा एक मात्रिक छंद है- चार चरणों वाला प्रसिद्ध छंद। इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। दोहे में चारों चरणों को मिलकर कुल ४८ मात्राएं होती हैं। प्रथम व तृतीय चरण के अंत में लघु गुरु (12) तथा द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा (21) का होना आवश्यक होता है तथा इसके विषम चरणों के प्रारंभ में स्वतंत्र जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है। दोहे लिखना बहुत ही आसान है, बस मात्राओं का ध्यान रखें। इसकी रचना करते समय एक बार इसे जरूर गायें और उसके बाद लिखकर मात्राओं की जांच करिए। दोहा में लय का बहुत महत्व है। साथ ही चारों चरणों के भाव आपस में मिलना जरूरी है। मात्राएं:  लघु एवं गुरु- ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है। ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ‘।’ है जबकि दीर्घ का चिन्ह ‘s’ है। लघु (१)- अ, इ, उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु हैं। गुरु (२)- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वर, विसर्ग यु