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Showing posts from June, 2021

मनहरण घनाक्षरी

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मनहरण घनाक्षरी - लेखन विधा घनाक्षरी के कई प्रकार होते है, सभी घनाक्षरियों में मनहरण घनाक्षरी सबसे ज्यादा प्रचलित विधा है।  अधिकतर लेखक , रचनाकार मनहरण घनाक्षरी लिखते हैं। यह चार छंद की होती है। प्रत्येक छंद का विन्यास (बनावट) इस प्रकार होता है - पद 1  -  चरण 1,  चरण 2     पद 2  -  चरण 3, चरण 4 ​प्रत्येक छंद में दो पद (पंक्तियाँ) होते है।  प्रत्येक पद में 2 चरण होते है।  इस प्रकार प्रत्येक छंद में कुल 4 चरण होते है। ​ अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं हैं। मनहरण घनाक्षरी कैसे लिखें तो अब आप चिंता से मुक्त हो जाइये, क्योंकि यहाँ आपको सरलतम भाषा में मनहरण घनाक्षरी लेखन की विधा, शब्द विन्यास, वर्ण गणना, लेखन नियम आदि सभी जानकारी दी जा रही है।                     मनहरण घनाक्षरी में वर्ण गणना इस प्रकार होती है -  पद 1  -  चरण 1 (8 वर्ण), चरण 2 (8 वर्ण)  पद 2  -  चरण 3 (8 वर्ण), चरण 4 (7 वर्ण) अंतिम वर्ण दीर्घ  (गुरु) लेने से मनहरण घनाक्षरी अत्यधिक आकर्षित व सुंदर लगती है। भारतीय छंद विधा गेय (गाने योग्य) होती है, इसलिए इसे लिखते समय शब्दों का चयन कुछ इस प्रकार करें की इसे सुगमता से गाया जा स

दोहा कैसे लिखें? 'सजल'

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 दोहे कैसे लिखे? प्रिय दोस्तों, दोहा एक मात्रिक छंद है- चार चरणों वाला प्रसिद्ध छंद। इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। दोहे में चारों चरणों को मिलकर कुल ४८ मात्राएं होती हैं। प्रथम व तृतीय चरण के अंत में लघु गुरु (12) तथा द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा (21) का होना आवश्यक होता है तथा इसके विषम चरणों के प्रारंभ में स्वतंत्र जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है। दोहे लिखना बहुत ही आसान है, बस मात्राओं का ध्यान रखें। इसकी रचना करते समय एक बार इसे जरूर गायें और उसके बाद लिखकर मात्राओं की जांच करिए। दोहा में लय का बहुत महत्व है। साथ ही चारों चरणों के भाव आपस में मिलना जरूरी है। मात्राएं:  लघु एवं गुरु- ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है। ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ‘।’ है जबकि दीर्घ का चिन्ह ‘s’ है। लघु (१)- अ, इ, उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु हैं। गुरु (२)- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वर, विसर्ग यु

मात्रा गणना के नियम

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अगर आप छंद लिखना सीखना चाहते हैं तो आपको मात्रा गणना का पूरा ज्ञान होना आवश्यक है। छंद दो प्रकार के होते हैं- 1- वर्णिक छंद इस छंद में वर्णों की गिनती होती है न कि मात्रा की। 2- मात्रिक छंद इन छंदों में मात्रा की गणना की जाती है। विशेष - गज़ल में मात्रा पतन का विधान है लेकिन छंदों में ऐसा नहीं होता है। मात्रा गणना के निम्नलिखित नियम हैं :- (१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ (२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २ होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ (३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे - .... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / .... य,र,ल,व,श,ष,स,ह (४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही रहती है (५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार .... २ हो जाता है (६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, .... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१ (७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो जाता है , जैस