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दुर्मिल सवैया

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"दुर्मिल सवैया" इसे चंद्रकला छंद भी कहते हैं। यह एक वर्णिक छंद है।  इसमें चार चरण होते हैं और चारों चरण समतुकांत होना जरूरी है।   12,12 वर्ण पर यति का विधान है। इसमें लघु वर्ण लघु तथा गुरु वर्ण गुरु ही रहेगा। दो लघु को मिलाकर एक गुरु वर्ण नहीं मान सकते।  प्रति चरण 8 सगण (112 112 112 112, 112 112 112 112.) होते हैं। ~~~~~~~~~~~~~~~~ उदाहरण - ¶इस जीवन की बस आस तुम्हीं, भर दो हिय प्रेमिल प्राण प्रिय।  मनभावन सूरत प्रीत रची, हरलो हर तामस प्राण प्रिय।।  नयनों बसती छवि मोदमयी, छलके घट ज्यों नग खान प्रिय।  सुखसागर ही उमड़े दिल में, कर दो दिल का प्रतिदान प्रिय।।  ¶सहमी-सहमी बहकी पलकें, दिल में उठती मद गागर सी।  अधरों पर लौट गई अभिधा, नवप्रीत सजी हिय सागर सी।। बहकी रजनी उतरी धरती,  किरणें गतिहीन सुधाकर सी।  अलकें मचली बन घोर घटा, प्रिय प्रीत बहार उजागर सी।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल' कोटा (राजस्थान)

द्रुतिविलम्बित छंद

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द्रुतिविलम्बित छंद ~~~~~~~~~ यह एक वर्णिक छंद होता है जिसका आधार वर्ण होते हैं। यह चार चरण का एक छंद होता है तथा दो-दो चरण समतुकांत होना जरूरी है। प्रति चरण में 12 वर्ण होते हैं जो नगण-भगण-भगण-रगण की मापनी पर आधारित होते हैं  (111-211-211-212)  उदाहरण - नमन शारद ज्ञान प्रकाशिनी। हृदय संकट मात विनाशिनी।। तमस कीचक दुःख विदारिणी। मधुर भाव विराग सँवारिणी।। भ्रमर भाव विहंग सदा उड़े। विटप मौन सुवास रचे बढ़े।। रुचिर गन्ध विराट बहे सदा। मनन मंथन सार यदाकदा।। सतत श्री कर शोभित कामदा। हरण हो सब आतिश आपदा।। शरण में रख मात सुवासिनी। महक दे मन को सु-प्रभासिनी।। ★★★★★★★★★★★★ मदन मोहन शर्मा 'सजल' कोटा (राजस्थान)