सार छंद

सार छंद [विधान]
दो-दो चरण समतुकांत : 
प्रति चरण 28 मात्रा : 
16,12 पर यति : 
चरणान्त दो गुरू
【22  112  211  1111】
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उदाहरण -
मन पंछी मतवाला बनकर, हरदम उड़ता रहता। 
नेह सरोवर डुबकी खाकर, लहर-लहर में बहता।। 
बन अनंग हमजोली प्रियतम, प्रीत मेह बरसाता। 
गुंजन करता उड़ता फिरता, मिलन राग तरसाता।। 

कामातुर हैं नयन सजीले, कामुक तीर चलाता। 
बन पराग हिय मध्य समाता, गागर भर छलकाता।। 
लता विटप सब शर्माते हैं, लेता जब अँगड़ाई। 
दसों दिशाएँ गुन-गुन गाएँ, छा जाती तरुणाई।।
★★★★★★★★★★★★
मदन मोहन शर्मा 'सजल'

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